रंगहीन प्यार
...............लेकिन उसके बाद गुलाबी प्यार भी था
स्याह शरारतें, नीली बदमाशियां, बैंगनी खुमार भी था.
बातें करने को मुझसे पीली धुप में तुम छत पर आते थे.
बातों में तकरार थी तो थोडा इजहार भी था
मटमैली सी नोंक झोंक थी तो गुलाबी प्यार भी था.
पहले जरुरी मैं थी, मुझसे बच जाये तो समय दूसरों को देते थे तुम.
सुबह अगर दरार थी तो नारंगी शामों में तुम्हारा इन्तजार भी था.
नीली छत और हरे फर्श की दुनिया थी हमारी
..............लाल गुस्सा था तो गुलाबी प्यार भी था.
है तो आज भी काले झगडे और सफ़ेद चुप्पी
और फिर...... फिर काले झगडे और सफ़ेद चुप्पी
इन सफ़ेद काले रंगों में वो गुलाबी कहीं गुम सा हो गया है
वो पीली धुप की हंसी, नारंगी शामें, हर रंग गुमसुम सा हो गया है
काश वो रंग मिल जाते दुनिया की बाज़ार में
घुला लेती उन रंगों को अपने रंगहीन से प्यार में.